
Some thing Big
Tuesday, May 14, 2013
Thursday, April 7, 2011
विश्व को उपहार मेरा
विश्व को उपहार मेरा!
पा जिन्हें धनपति, अकिंचन,
खो जिन्हें सम्राट निर्धन,
भावनाओं से भरा है आज भी भंडार मेरा!
विश्व को उपहार मेरा!
थकित, आजा! व्यथित, आजा!
दलित, आजा! पतित, आजा!
स्थान किसको दे न सकता स्वप्न का संसार मेरा!
विश्व को उपहार मेरा!
ले तृषित जग होंठ तेरे
लोचनों का नीर मेरे!
मिल न पाया प्यार जिनको आज उनका प्यार मेरा!
विश्व को उपहार मेरा!
जाओ कल्पित साथी मन के
जाओ कल्पित साथी मन के!
जब नयनों में सूनापन था,
जर्जर तन था, जर्जर मन था,
तब तुम ही अवलम्ब हुए थे मेरे एकाकी जीवन के!
जाओ कल्पित साथी मन के!
सच, मैंने परमार्थ ना सीखा,
लेकिन मैंने स्वार्थ ना सीखा,
तुम जग के हो, रहो न बनकर बंदी मेरे भुज-बंधन के!
जाओ कल्पित साथी मन के!
जाओ जग में भुज फैलाए,
जिसमें सारा विश्व समाए,
साथी बनो जगत में जाकर मुझ-से अगणित दुखिया जन के!
जाओ कल्पित साथी मन के!
जब नयनों में सूनापन था,
जर्जर तन था, जर्जर मन था,
तब तुम ही अवलम्ब हुए थे मेरे एकाकी जीवन के!
जाओ कल्पित साथी मन के!
सच, मैंने परमार्थ ना सीखा,
लेकिन मैंने स्वार्थ ना सीखा,
तुम जग के हो, रहो न बनकर बंदी मेरे भुज-बंधन के!
जाओ कल्पित साथी मन के!
जाओ जग में भुज फैलाए,
जिसमें सारा विश्व समाए,
साथी बनो जगत में जाकर मुझ-से अगणित दुखिया जन के!
जाओ कल्पित साथी मन के!
Subscribe to:
Posts (Atom)