Pages

Thursday, April 7, 2011

अब निशा नभ से उतरती

अब निशा नभ से उतरती!

देख, है गति मन्द कितनी
पास यद्यपि दीप्ति इतनी,
क्या सबों को जो ड़राती वह किसी से आप ड़रती?
जब निशा नभ से उतरती!

थी किरण अगणित बिछी जब,
पथ न सूझा! गति कहाँ अब?-
कुछ दिखाता दीप अंबर, कुछ दिखाती दीप धरती!
अब निशा नभ से उतरती!

था उजाला जब गगन में
था अँधेरा ही नयन में,
रात आती है हृदय में भी तिमिर अवसाद भरती।
अब निशा नभ से उतरती!


No comments:

Post a Comment