देख, रात है काली कितनी!
आज सितारे भी हैं सोए,
बादल की चादर में खोए,
एक बार भी नहीं उठाती घूँघट घन-अवगुंठन वाली!
देख, रात है काली कितनी!
आज बुझी है अंतर्ज्वाला,
जिससे हमने खोज निकाला
था पथ अपना अधिक तिमिर में और चली थे चाल निराली!
देख, रात है काली कितनी!
क्या उन्मत्त समीरण आता,
मानव कर का दीप बुझाता,
क्या जुगुनूँ जल-जल करता है तरु के नीड़ों की रखवाली!
देख, रात है काली कितनी!
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