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Thursday, April 7, 2011

मेरा गगन से संलाप / हरिवंशराय बच्चन

मेरा गगन से संलाप!

दीप जब दुनिया बुझाती,
नींद आँखों में बुलाती,
तारकों में जा ठहरती दृष्टि मेरी आप!
मेरा गगन से संलाप!

बोल अपनी मूक भाषा
कुछ मुझे देते दिलासा,
किंतु जब कुछ पूछता मैं, देखते चुपचाप!
मेरा गगन से संलाप!

एक ही होता इशारा,
टूटता रह-रह सितारा,
एक उत्तर सर्व प्रश्नों का महासंताप!
मेरा गगन से संलाप!


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