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Thursday, April 7, 2011

क्या मैं जीवन से भागा था?

क्या मैं जीवन से भागा था?

स्वर्ण श्रृंखला प्रेम-पाश की
मेरी अभिलाषा न पा सकी,
क्या उससे लिपटा रहता जो कच्चे रेशम का तागा था!
क्या मैं जीवन से भागा था?

मेरा सारा कोष नहीं था,
अंशों से संतोष नहीं था,
अपनाने की कुचली साधों में मैंने तुमको त्यागा था!
क्या मैं जीवन से भागा था?

बूँद उसे तुमने दिखलाया,
युग-युग की तृष्णा जो लाया,
जिसने चिर अथाह मधु मंजित जीवन का प्रतिक्षण माँगा था!
क्या मैं जीवन से भागा था?


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